China Electric Car Industry Crisis 2025
चीन की इलेक्ट्रिक व्हीकल यानी ईवी इंडस्ट्री ने पिछले एक दशक में दुनिया को चकित कर देने वाली तरक्की की है। कुछ साल पहले तक यह सेक्टर चीन की अर्थव्यवस्था के लिए आशा की किरण माना जा रहा था। सरकार की खुली सब्सिडी, तेज़ तकनीकी विकास और घरेलू बाजार में भारी डिमांड ने सैकड़ों नई ईवी कंपनियों को जन्म दिया। लोगों को लगा कि चीन अब दुनिया में सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता और निर्यातक बन जाएगा, और कुछ हद तक ऐसा हुआ भी। लेकिन 2024 के बाद हालात बदलने लगे। वही इंडस्ट्री जो चीन के आर्थिक विकास की ताकत बननी थी, आज अत्यधिक प्रतियोगिता, घटते मुनाफे और कीमतों की अनियंत्रित जंग के कारण बिखरने लगी है।
यह कहानी सिर्फ गाड़ियों की नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की है जिनकी रोजी रोटी इस सेक्टर से जुड़ी हुई है। यह कहानी निवेशकों, सप्लायरों और सरकार की भी है, जो अब इस बूम को संभालने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन हालात इतने उलझ चुके हैं कि समाधान इतना आसान नहीं दिखता।
एक मार्केटिंग एक्सपर्ट की दर्दनाक दास्तान
ली होंगशिंग चीन के ऑटो उद्योग से जुड़े एक अनुभवी मार्केटिंग एक्सपर्ट हैं। 2024 की वसंत में उन्होंने चीन की एक नई ईवी कंपनी जी युए के साथ एक बड़ा विज्ञापन अनुबंध किया। जी युए उस समय तेजी से उभरता हुआ ब्रांड माना जा रहा था। इसके पीछे दो बड़ी कंपनियां थीं, बैडू और गीली, जिनका चीन में बड़ा नाम है। ली को लगा कि उन्होंने एक सुनहरा मौका पकड़ लिया है। उन्होंने अपनी जेब से और उधार लेकर लाखों युआन खर्च कर दिए, ताकि कंपनी के सोशल मीडिया कैंपेन को बढ़ावा मिल सके और बाद में उन्हें अच्छा भुगतान मिल जाए।
लेकिन कुछ ही महीनों में हालात पलट गए। जी युए अचानक वित्तीय संकट में फंस गई। अक्टूबर 2024 में कंपनी ने नई फंडिंग की तलाश में पुनर्गठन की घोषणा की, जो असल में उसके अंत की शुरुआत थी। कुछ ही समय बाद कंपनी धराशायी हो गई और ली पर करीब 4 करोड़ युआन यानी 5.6 मिलियन डॉलर का भारी कर्ज चढ़ गया। उनके अनुसार, यह उनकी जिंदगी का सबसे बुरा दौर था। उन्हें उम्मीद थी कि एक बड़ी कंपनी के साथ काम कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में पूरा तंत्र ही अंदर से कमजोर था।
चीन में ईवी सेक्टर का तेज़ उभार और उतनी ही तेज़ गिरावट
चीन ने 2000 के दशक में ही इलेक्ट्रिक वाहनों पर बड़ा दांव लगाया था। 2010 के शुरुआती वर्षों में इसे रणनीतिक सेक्टर घोषित किया गया और सरकार ने भारी आर्थिक प्रोत्साहन देना शुरू किया। परिणामस्वरूप लगभग 2019 तक चीन में करीब 500 घरेलू ईवी ब्रांड्स बन चुके थे। यह संख्या दुनिया के किसी भी देश से कई गुना अधिक थी।
इन कंपनियों को शुरू में न केवल सब्सिडी मिली बल्कि सस्ते लोन, टैक्स में छूट और उत्पादन के लिए भूमि भी मिली। इसके साथ ही घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल गाड़ियों पर धीरे धीरे प्रतिबंध और पाबंदियां बढ़ने लगीं जिससे ईवी की मांग और बढ़ी। बीवाईडी जैसी कंपनियों ने न केवल चीन में बल्कि वैश्विक स्तर पर रिकॉर्ड बिक्री की और टेस्ला जैसी दिग्गज कंपनियों को भी पछाड़ दिया।
लेकिन जैसे ही बाजार में बहुत सारे खिलाड़ी उतर आए, असली जंग शुरू हुई। सैकड़ों कंपनियां एक ही बाजार हिस्सेदारी के लिए लड़ने लगीं। तकनीक तो कई के पास थी, लेकिन मुनाफे की गुंजाइश बहुत कम रह गई।
कीमतों की जंग ने बिगाड़ा पूरा खेल
ज्यादा से ज्यादा ग्राहक खींचने के लिए कंपनियों ने एक दूसरे से कीमतें कम करनी शुरू कर दीं। कोई भी कंपनी पीछे नहीं रहना चाहती थी क्योंकि थोड़ी सी चूक का मतलब बाजार से बाहर होना था।
इस स्थिति ने एक ऐसे चक्र को जन्म दिया जिसमें
- कंपनियों के मुनाफे में लगातार गिरावट होने लगी
- सप्लायरों पर दबाव डाला गया कि वे अपनी कीमतें घटाएं
- भुगतान की समयसीमा महीनों तक खिंच गई जिससे छोटे पार्ट्स सप्लायरों पर वित्तीय संकट गहराने लगा
- इनोवेशन पर ध्यान देने के बजाय कंपनियों ने सिर्फ लागत घटाने पर जोर देना शुरू कर दिया
2017 में जहां चीन के ऑटो सेक्टर का औसत प्रॉफिट मार्जिन करीब 8 प्रतिशत था, वहीं 2024 में यह घटकर 4.3 प्रतिशत तक आ गया। उत्पादन क्षमता का उपयोग भी लगभग आधा ही रह गया। बहुत सारी फैक्ट्रियां पूरी क्षमता पर काम नहीं कर पा रहीं, जबकि कंपनियां नई-नई मॉडल्स सस्ती कीमतों पर लॉन्च कर रही हैं ताकि ऑर्डर मिले और वे टिक सकें।
सप्लायरों पर टूटा दबाव, मजदूरों पर संकट
जब कंपनियों ने सप्लायरों पर कीमतें घटाने का दबाव डाला, तो इसका असर सीधा छोटे उद्योगों और कर्मचारियों पर पड़ा। कई सप्लायरों को मजबूरी में 30 से 40 प्रतिशत तक अपनी कीमतें घटानी पड़ीं। ऐसा करने के लिए उन्होंने मजदूरों की तनख्वाह घटाई, अस्थायी कर्मचारी रखे और काम के घंटे बढ़ाए।
एक वुहान स्थित कंपनी ने बताया कि उन्हें सिर्फ टिके रहने के लिए कीमतें 40 प्रतिशत तक घटानी पड़ीं। उन्होंने कहा कि जब हर तरफ से लागत घटानी होती है तो अंत में मजदूर ही सबसे आसान निशाना बन जाते हैं।
सरकार के कदम और असली चुनौती
चीनी सरकार ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने खुद एक पार्टी मैगजीन में लेख लिखकर इस अव्यवस्थित और अव्यावहारिक प्रतियोगिता पर लगाम लगाने की बात कही।
सरकार ने कई कदम उठाए
- ऑटो कंपनियों को बुलाकर अनावश्यक प्राइस वॉर न करने की चेतावनी दी गई
- सप्लायरों को भुगतान 60 दिनों के भीतर करने का नियम लागू किया गया
- स्थानीय सरकारों को निर्देश दिया गया कि वे अतिरिक्त सब्सिडी बंद करें और ओवरकैपेसिटी को घटाएं
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ये कदम केवल शुरुआत हैं। वास्तविक समस्या बहुत गहरी है। पिछले कई वर्षों में सरकार ने जिस तेजी से निवेश और सब्सिडी दी, उससे इंडस्ट्री बहुत बड़ी हो गई। अब अचानक अगर कंपनियां बंद की जाती हैं तो करोड़ों लोग प्रभावित होंगे। चीन की ऑटो इंडस्ट्री में करीब 48 लाख लोग कार्यरत हैं। अचानक कटौती से सामाजिक अस्थिरता का खतरा बढ़ सकता है।
भविष्य में कौन टिकेगा और कौन डूबेगा
वर्तमान में चीन में 150 से अधिक ऑटो ब्रांड और 50 से अधिक ईवी निर्माता बाजार में सक्रिय हैं। इनमें से कई कंपनियां घाटे में चल रही हैं और बार बार नए निवेश से ही काम चला रही हैं। आने वाले पांच वर्षों में इस इंडस्ट्री में नॉकआउट राउंड चलेगा।
एक्सपेंग कंपनी के संस्थापक हे शियाओपेंग ने कहा है कि यह प्रतियोगिता कम से कम पांच साल और चलेगी। इसका मतलब है कि कई कंपनियां धीरे धीरे बाजार से बाहर होती चली जाएंगी और अंत में केवल कुछ बड़ी और मजबूत कंपनियां बचेंगी।
रोजगार और सामाजिक स्थिरता सबसे बड़ा प्रश्न
इस संकट का सबसे संवेदनशील पहलू रोजगार है। अगर सैकड़ों कंपनियां बंद होती हैं तो लाखों लोगों की नौकरियां जाएंगी। इससे केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक तनाव भी बढ़ेगा। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन की स्थिरता काफी हद तक रोजगार पर निर्भर करती है। यही कारण है कि सरकार तेजी से फैसले लेने में हिचक रही है।
चीन की इलेक्ट्रिक वाहन इंडस्ट्री एक अभूतपूर्व मोड़ पर खड़ी है। एक ओर यह दुनिया की सबसे बड़ी ईवी मार्केट बन चुकी है और दूसरी ओर अत्यधिक प्रतियोगिता और कीमतों की अनियंत्रित जंग के कारण टूटने लगी है। कंपनियां लागत घटाने में इतनी व्यस्त हैं कि इनोवेशन पर ध्यान ही नहीं दे पा रहीं। सप्लायर दबाव में हैं, मुनाफा घट रहा है और नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।
सरकार के लिए यह एक मुश्किल संतुलन का खेल है। अगर वह तेजी से ओवरकैपेसिटी घटाती है तो रोजगार पर संकट आएगा और अगर कुछ नहीं करती तो इंडस्ट्री धीरे धीरे आर्थिक रूप से कमजोर होती जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले वर्षों में इस सेक्टर में बड़े बदलाव होंगे और अंत में केवल कुछ ही कंपनियां टिक पाएंगी जो वित्तीय और तकनीकी रूप से मजबूत हैं।
यह स्थिति न केवल चीन बल्कि वैश्विक ऑटो उद्योग के लिए भी अहम है क्योंकि चीन अब दुनिया में सबसे अधिक कारों का निर्यातक बन चुका है। यहां की कोई भी उथल पुथल पूरी दुनिया के बाजार को प्रभावित कर सकती है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न रिपोर्टों, उद्योग विशेषज्ञों और सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है। किसी भी निवेश या व्यवसायिक निर्णय के लिए पाठक स्वयं जानकारी की पुष्टि करें और विशेषज्ञ सलाह लें।